न्यायमूर्ति ए बदरुद्दीन ने यह फैसला एक शख्स की उस याचिका पर सुनाया, जिसमें आईपीसी, पॉक्सो और किशोर न्याय अधिनियम के तहत विभिन्न अपराधों के लिए उसके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की गई थी।
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